सप्तमी व अष्टमी के वेध से दूषित है जन्माष्टमी व्रत यह भ्रम नही तो क्या है ?
धर्म ग्रन्थों में जन्माष्टमी व्रत दो अलग -अलग दिन मनाए जाने की परम्परा चली आ रही या यूं कहें तो यह पर्व तीन दिन में भी मनाया जाता है । यह व्रत प्रथम स्मार्त ( गृहस्थ) ,व द्वितीय वैष्णव के साथ -साथ बृद्ध वैष्णव (साधु -सन्याशी ) अलग -अलग दिन उत्सव मनाते चले आ रहे है । सर्व प्रथम यह निर्णय करना होगा कि स्मार्त है कौन? यह सर्व विदित है कि जो मनुष्य किसी वैष्णवाचार्य से दीक्षा न लिया हो अथवा किसी वैष्णव कुल में जन्म न लिया हो । यैसे शैव, शाक्त,गणपत्य आदि अन्य सम्प्रदाय के सभी गृहस्थ स्मार्त ही कहलाते है । वैसे तो जन्माष्टमी व्रत सभी के लिए शुभ फल को देने वाला है।
कुछ आचार्यों का यह मानना है कि जन्माष्टमी व्रत को सप्तमी से विद्ध अष्टमी में नही करना चाहिए । वैसे तो जन्माष्टमी व्रत के भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के निशीथ काल अर्थात अर्धरात्रि में व्याप्त अष्टमी में करना चाहिए ।
ब्रह्मपुराण के अनुसार कहा भी गया है- —
💐💐भाद्रपदेष्टम्यां निशीथे कृष्णपक्षगे💐💐 ।।
साथ ही वह निशीथ व्यापिनी अष्टमी चंद्रोदयव्यापिनी भी होनी चाहिए । 👍अब यदि दोनों दिन चन्द्रोदय व्यापिनीअष्टमी हो तो आचार्यों ने दूसरे दिन की अष्टमी को ग्रहण करने की बात कही है किंतु अब प्रश्न यह उठता है कि यदि दूसरे दिन निशीथ काल मे चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी न हो तो क्या जन्माष्टमी व्रत में उस दिन को ग्रहण करेंगे ?? 👌नही अतः उन सभी संस्कृत के विद्वानों को यह जानना होगा कि जो वह सप्तमी से युत अष्टमी को निषेध मानते क्या उनके द्वारा लिया गया निर्णय जो अष्टमी से युत नवमी है उसमें अष्टमी तिथि निशीथ काल मे चन्द्रोदय व्यापिनी प्राप्त हो रही है। यदि नही तो उस दिन व्रत का पालन करना सर्वथा वर्जित व शास्त्र की मर्यादा के विपरीत होगा ।

💐💐 आईये अब चर्चा करते है उन्ही विद्वानों के उस सप्तमी से युत अष्टमी जनित जन्माष्टमी व्रत के निषेध पक्ष पर …………💐💐

 

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक वाक्य प्राप्त होता है जो इस बात मत प्रदान करता है–
💐 सप्तमी नाष्टमीयुक्ता न सप्तम्यां युताष्टमी ।।
सर्वेषु व्रत कल्पेषु अष्टमी परतः शुभा ।। 💐💐

किन्तु उन आचार्यों को जो इस प्रमाण को जन्माष्टमी व्रत से जोड़ते है उन्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि यह सप्तमी से युत अष्टमी का निषेध निगमवाक्य से शुक्ल पक्ष की अष्टमी के लिए कहा गया है न कि कृष्ण अष्टमी के लिए ।।

उपवासेंषुराजेन्द्र ने धर्मसनातन में निगमवाक्य को स्पष्ट करते हुए यह कहा कि -…………

💐शुक्ल पक्षोअष्टमी चैव शुक्लपक्ष चतुर्दशी ।।
पूर्वविद्वा न कर्तव्या कर्तव्या परसंयुता ।।💐💐
(निगमवाक्य,उपवासादि कार्येषु ,धर्म सनातनः ) इस प्रमाण वाक्य से स्पष्ट है कि शुक्ल अष्टमी व शुक्ल चतुर्दशी दोनों ही व्रत में पर विद्वा यानी अगले दिन को ग्रहण किया गया है ।पूर्व से वेधित तिथि को नही ।
तथा इसी निगमवाक्य ने पूर्व विद्वा को प्रमाणित करते हुए कहा कि ……..

💐💐कृष्णपक्ष अष्टमी चैव कृष्णपक्ष चतुर्दशी 💐💐।।
💐💐पूर्वविद्वैव कर्तव्या परविद्वा न कुत्रचिद 💐💐।।
अतः उपरोक्त निगमवाक्य को प्रमाण मानते हुए निर्विवाद है कि स्मार्त गृहस्थ निशीथ कालिक चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी को ग्रहण करेंगे चाहे वह सप्तमी से ही विद्ध क्यो न हो । क्योकि उपरोक्त वाक्य से कृष्ण पक्ष की अष्टमी में पूर्व विद्ध तिथि को ही ग्रहण कर व्रत को करने का आदेश प्राप्त है ।

 

इस वर्ष 11 अगस्त 2020 दिन मंगलवार को सप्तमी तिथि प्रातः 06:14 तक है उसके बाद अष्टमी तिथि की प्राप्ति है तथा चन्द्रोदय भी रात्रि के 11:21 पर प्राप्त हो जा रही है अतः निशीथ कालिक चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी जो सप्तमी से युत है वही गृहस्थ स्मार्त जनों के लिए जन्माष्टमी व्रत के लिए शुभ कारक होगी ।
दूसरी बात की दूसरे दिन यानी बुधवार को अष्टमी सुबह 08:01 मिनट तक ही प्राप्त हो रही है उसके बाद नवमी की प्राप्ति हो रही जो गोकुलाष्टमी या बुधाष्टमी पर्व के रूप में वैष्णव जनों के लिए उत्सव का दिन होगा । तथा जो वृद्ध वैष्णव है जो उदयव्यापिनी रोहिणी को ग्रहण करते वह 13 अगस्त दिन गुरुवार को कृष्ण जन्म का व्रत करेंगे ।

💐💐 सादर के साथ निवेदन है व्रतों को उलझाए न उसके सही निर्णय को समझने के लिए ग्रन्थों का अन्वेषण आवश्यक है । । 💐💐

विवेक कुमार उपाध्याय
सहायक विभागाध्यक्ष (ज्योतिष फलित)
श्री बैकुंठनाथ पवहारि संस्कृत महाविद्यालय ,बैकुंठपुर ,।
जिला – देवरिया ।

💐💐 एवम ,निदेशक💐💐
ऋषि भारद्वाज ज्योतिशानुसन्धान एवम जन कल्याण केंद्र
देवरिया ।।💐💐