पितृ दोष शांति पूजा
यदि आपके जीवन में अकारण अवरोध , वाणिज्य व व्यापार में बाधा आ रही है तथा घर में क्लेश की स्थिति बनी हुई है तो निश्चित ही आपके ऊपर पितृ दोष का प्रभाव हो रहा है।
आप तत्काल अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध व भोजन कराए ।
- अमावस्या को अपने घर में ब्राह्मण को भोजन काराए व उसे दक्षिण वस्त्र आदि का दान करें । अथवा : पितृ शांति पूजा कराना शुभकारी होगा ।
- गाय को दोपहर में हरा चारा खिला कर अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भाव को निरूपित कर उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है ।
- रसोई में बने भोजन को किसी पत्तल में रखकर पंचबली के रूप में घर की छत पर या कहीं मार्ग के किनारे रखें।
नोट • पितरों की प्रसन्नता हेतु उपचार करते समय लौकी व मसूर न खाएं।
अघोर मंत्र शांति यज्ञ
मंडप में लगातार अशांति की स्थिति बनने ,कार्यों में व्यवधान व उथल-पुथल की स्थिति होने पर तथा गृहस्वामी जीवन से निराश होने लगे ऐसी स्थिति में किसी योग्य आचार्य की देखरेख में अघोर मंत्र शांति विधि कराकर पुनः जीवन में सुख शांति का अनुभव किया जा सकता है
- इस यज्ञ विधान को करने से 21 दिन पूर्व ही आपको दूध से बनी सामग्री का परहेज करना होगा।
- मंडप में दही का पूर्णतया निषेध रहेगा।
यह शांति विधान भगवान शिव के गण अघोर पुरुष की आराधना से सिद्ध होता है । इसके प्रमुख देवता शिव को ही माना गया है । क्योकि भगवान शिव का नाम रूद्र भी है व रुद्र नाम का शाब्दिक अर्थ दुःखों को हरने वाला होता है । इसीलिए मनुष्य के जीवन में संकट व दुःख की स्थिति आने पर अघोरशान्ति पूजा सबसे महत्वपूर्ण मानी गयी है ।
विनायक शांति पूजा :
यह पूजा विधान जीवन में आने वाले समस्त विघ्नों के शमन के लिए किया जाता है। खास तौर पर जब कोई बालक कुमार्ग आदि पर चलकर भटकाव की स्थिति में परिवार के विपरीत आचरण करने लगे तो उसे निश्चित ही विनायक शांति पूजा करना चाहिए।
जीवन में आने वाले दुःख स्वप्नों की स्थिति में भी जातक की शुद्धता के लिए विनायक शांति करनी चाहिए ।
जैसे -स्वप्न देखना,बिना सर का शव देखना, अपने स्वयं के कार्यों का अवरोध देखना आदि ।
विद्यार्थियों के शिक्षा में अरुचि की स्थिति बनने व उसकी हठता ,मनमानी करने की स्थिति में भी विनायक शांति का प्रयोग शुभकारी होता है ।
विद्या गणपति अर्चन पूजा :
यह पूजा विधान विशेष तौर पर अपने कैरियर को उत्तम बनाने में लगे उन विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो प्रतियोगी परीक्षाओं को देने वाले है ।गणेश विद्या की यह प्राचीन विधा विद्यार्थियों को उनके लक्ष्य में सहायक सिद्ध होती है।
इसमें सबसे उत्तम प्रयोग
- गणपति अथर्वशीर्ष का 1100 पाठ जो की आठ योग्य ब्राह्मण को वर्णन करके भगवान महागणपति का विधि अनुसार पूजन करके किया जाना होता है। इस पाठ श्रुति से प्रसन्न होकर महागणपति भगवान विद्यार्थियों के प्रज्ञा शक्ति बल प्रदान करते है ।
- किसी सिद्ध प्राचीन गणेश मंदिर में भगवान गणेश का पूजन करके दूर्वा , लाजा , मोदक ,से अर्चन करने से भगवान गणेश शीघ्र ही प्रसन्न होकर विद्यार्थियों की मनोकामनाओं को पूर्ण करते है ।
शिव श्रृंगार पूजन :
यह पूजन विधान बहुत ही प्राचीन वह भक्तों को शीघ्र ही लाभ देने वाला है।
प्रदोष काल में भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक कर विधि पूर्वक पूजन ,श्रृंगार व आरती करने का नियम है ,यह प्रयोग-महीने की अष्टमी, चतुर्दशी ,को किया जाना श्रेयस्कर बताया गया है।
इसमें भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होकर पूजन करने वाले की मनोकामनाओं को पूर्णता प्रदान करते हैं ।यह पूजन विशेष करके गृहस्थ जीवन की शुभता , धन-धान्य की समृद्धि व अलक्ष्मी के निवारण अर्थात जीवन के दरिद्र फल को हटाने व उसकी शुभता के लिए किया जाता है।
वास्तु शांति पूजा
जब कभी भी आप नए मकान में शिफ्ट हो रहे हो,व्यापार को नई जगह ले जा रहे हो ,या आपको यह लगता हो कि जब से आप इस नए जगह आए तब से कुछ ना कुछ समस्या हो रही है या कुछ ऊपरी फ्लोर पर नया निर्माण कराए हुए तो निश्चित ही आपको अपने जीवन में उन्नति व व्यापार की शुभता की कामना हेतु वास्तु शांति कराना शुभकारी सिद्ध होगा ।
वैसे भी एक या पांच वर्ष के उपरांत वास्तु देवता की प्रसन्नता के लिए वास्तु शांति आवश्यक है।
- मंडप में आने वाली बाह्य बाधाओ ,नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश से आपसी संतुलन प्रभावित हो जाया करता है उसके निदान के लिए वास्तु शांति पूजा नितांत आवश्यक मानी गई है। वास्तु देवता की प्रसन्नता से मंडप में सकारात्मक ऊर्जा के साथ-साथ सुख शांति ,समृद्धि व आरोग्यता की प्राप्ति होती है।
- मुख्य द्वार पर कुमकुम व हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनावे।
- रसोई को अग्नि कोण में रखें व उत्तर दिशा में बोरिंग या आरो (पीने का पानी)सेट करें।
- प्रत्येक रविवार मंगलवार को फिटकरी +नमक(सेंधा )से घर को पूछा करें।
त्रिपिंडी श्राद्ध पूजन :
यह श्राद्ध विधान के प्रकारों से सबसे उत्तम श्राद्ध माना जाता है । कुल में हुए अकाल मृत्यु से संतप्त पितरों की मुक्ति की कामना हेतु यह किया जाता है। क्योंकि जिन पूर्वजो की अकाल मृत्यु -रोग की असाध्यता , सर्प दश, अग्नि भय, विष , दुर्घटना ,आदि से मृत्यु होती है उनकी उत्तम षोडशी के बाद भी प्रेत योनि से मुक्ति नहीं हो पाती है । वह सभी पितर प्रेत योनि को प्राप्त हो दारुण दुःख का सहन करते हैं । कालांतर में हमारे द्वारा उनकी मुक्ति के उपाय न करने पर वही पितर हमें नाना प्रकार के कष्टों का भोग कराते हैं।
इनके संतप्त होने से परिवार में आपसी विवाद, सुख की कमी, अशांति ,दुर्भाग्य , अनचाही घटनाएं ,असामयिक मृत्यु ,असंतोष ,अपव्यय ,व संतान बाधा ,आदि की समस्या उत्पन्न होने लगती है।
अत: जीवन में उपरोक्त समस्याओं के अकारण आने पर निश्चित ही यह ध्यान दें कि कहीं ना कहीं हमारे पितृ संतप्त है। अतः उन्हें संतुष्ट करने हेतु हमे त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा को करना परम आवश्यक है।
श्राद्ध के निमित्त शुद्ध स्थान:
- प्रमुख रूप से काशी के पिशाच मोचन तीर्थ पर त्रिपिंडी श्राद्ध करना श्रेयस्कर बताया गया है।
- त्रयंबकेश्वर तीर्थ नासिक में भी इस श्राद्ध को करना श्रेयस्कर माना गया है।
- किसी भी नदी तट या पीपल वृक्ष के समीप भी यह श्राद्ध विधिपूर्वक किया जा सकता है।
- इस क्रिया से प्रसन्न होकर हमारे पितृ गण हमें संतान सुख ,समृद्धि व नाना प्रकार की सौख्यता को प्रदान करते हैं।
विशेष रूप से: कार्तिक से चार माह (कार्तिक, अगहन ,पौष ,माघ ) मैं यह श्राद्ध कर्म अती श्रेयस्कर बताया गया है।
विशेष परिस्थितियों में कभी भी उचित मुहूर्त के साथ इस श्राद्ध विधि को संपादित किया जा सकता है।
शनि शांति व दीपदान :
जिस किसी भी जातक के जीवन में परिश्रम के बाद भी लगातार असफलता की प्राप्ति हो रही हो निश्चित ही उसका शनि उसे प्रभावित कर रहा है । शनि के साढ़े साती का अशुभ प्रभाव मानव को राजा से रंक तक बनने को मजबूर कर देता है । शनिवार के दिन भगवान शनि की पूजा का विधान बताया गया है इनकी पूजा सायं काल के बाद विशेष फलदाई मानी जाती है।
भगवान शनि की प्रसन्नता के लिए निम्न उपाय :
- शनि के वैदिक मंत्र या बिजोक्त मंत्र का जप ब्राह्मण से सविधि पूर्वक कराए यैसा करने से शनि देव शीघ्र ही शुभता को प्रदान करते है ।
- स्नान आदि से पवित्र होकर सायं काल पीपल वृक्ष के नीचे एक या सात दीपक ,पीला सरसों तेल से जलाए साथ ही दीप दान करते समय सायं दीप दान मन्त्र का वाचन कर प्रणाम करें ।
- विद्यार्थियों के जीवन में शनि की प्रतिकूलता होने पर दीपदान के समय उनके शरीर से काली मिर्च के तीन-तीन दाने बाएं हाथ से घुमाकर दीपक में छोड़े व प्रणाम करावे।
- शनि की प्रतिकूलता से रोगों की सहायता बढ़ाने पर नक्षत्र दीपदान कराए । इस क्रिया को जानने के लिए संस्था से सम्पर्क करें ।
नागबली /सर्प शांति
मनुष्य के जीवन में आने वाली समस्याओं का किसी न किसी ग्रह से कोई ना कोई संबंध जुड़ा रहता है ।जिससे मनुष्य संसार के अनेक कष्टों का भोग करता है। ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत राहु एक ऐसा ग्रह है जिसकी शुभता मनुष्य को जीवन की अनेक एश्वर्यता ,सौख्यता को प्रदान करता है। राहु व्यक्ति के जीवन में अचानक पद लाभ ,सम्मान, प्रतिष्ठा व यश को दिलाता है। साथ ही दांपत्य /गृहस्थ जीवन की पूर्णता को भी सिद्ध करता है ।
चुकी राहु को ज्योतिष शास्त्र में अहिमुख अर्थात सर्प की संज्ञा दी गई है । इसी कारण जिस किसी भी जातक के कुंडली में राहु ग्रह पीड़ित होता है उन्हें निम्न बाधाओं से ग्रसित होना पड़ता है :
- स्वप्न में सर्प का दिखाई देना या उसके समूह के साथ भागना या घीरे होना।
- गर्भपात व संतान सुख से वंचित होना।
- व्यापार में लगातार नुकसान की स्थिति उत्पन्न होना।
- नौकरी पेशे में उतार-चढ़ाव के साथ प्रमोशन आदि का न होना।
- विवाह में विलंब की स्थिति व परिवार में बार-बार स्वास्थ्य की समस्या उत्पन्न होना।
👉यह सभी उसी राहु या यूं कहे तो पूर्व जन्म में सर्प शाप के कारण फलीभूत होता है।
राहु /सर्प शांति हेतू निम्न उपाय करके जातक अपने जीवन को सुखमय ,शांतिमय बना सकता है।
सर्प शांति उपाय:
- किसी भी माह के दोनों पक्षों के पंचमी तिथि को खास तौर पर यदि मंगलवार और पंचमी तिथि की प्राप्ति हो तो उस दिन किसी सिद्ध शिवालय में भगवान शिव का अभिषेक व नाग पूजन कर राहु जनित दोष से बचा जा सकता है।
- सर्प शॉप से बचने के लिए नाग पंचमी को प्रदोष काल में आठ नागों की मूर्ति बनाकर उनकी प्रतिष्ठा के साथ पूजन करें उसके उपरांत भगवान शिव का महा अभिषेक कर उस अष्ट नागों को संकल्पित कर नर्मदा ,गंगा ,गोदावरी , आदि के निर्मल तीर्थ में प्रभावित किया जाए।
- स्वर्ण नाग की मूर्ति बनाकर जातक स्वयं बुधवार से प्रारंभ कर अगले बुधवार तक जल/ दूध / घृत आदि से मूर्ति का स्नान करावे उसके अनंतर एक कांसे की कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर मूर्ति को रखकर दूध व धान का लावा (लाजा) से भर दे इस तरह 8 दिन तक पूजन करने के उपरांत उस मूर्ति को नदी में प्रवाहित करें।
- किसी योग्य आचार्य की देख- रेख में पीठ पूजन के साथ स्वर्ण नागबली वह सर्प शांति यज्ञ विधि को संपन्न कर अपने जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है।
करियर उन्नति चण्डी होम
आज के वर्तमान परिवेश में देखा जाए तो प्रत्येक मनुष्य अपने करियर ,व्यापार आदि में निरंतर उन्नति चाहता है। इसके लिए वह दिन रात परिश्रम तो करता है परंतु उसे परिश्रम के अनुसार सफलता प्राप्त नहीं हो पाती ।यहां तक की कई बार यह देखने को मिलता है कि मनुष्य सफलता के बेहद नजदीक आकर भाग्य के वशीभूत होकर असफल हो जाता है । ऐसी स्थितियों उसके करियर सुधार के लिए बहुत सारे आयाम व प्रकल्प बताए गए हैं।
- ऐसे जातक प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देकर अपने आत्म बल को मजबूत कर सकते हैं।
- अपनी समस्या के समाधान के लिए भगवान गणेश के बीज मंत्र ॐ गं गणपतये नमः का प्रतिदिन तीन माला जाप करना श्रेयष्कर होगा ।तथा साथ ही संकटनाशकगणेशस्तोत्र का प्रतिदिन तीन पाठ करने से सारी समस्याओं का समाधान संभव है।
- कैरियर और व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए चण्डी होम पूजा सबसे उत्कृष्ट व शीघ्र ही लाभ देने वाली बताई गई है। इस होम से देवी को शीघ्र ही प्रसन्न कर मनुष्य अपने मनोभिलषित कामनाओं की पूर्णता कर लेता है।
- चण्डी होम पूजा विधि एक तरह का तांत्रिक प्रयोग है ,जिसे दोनों पक्षों के अष्टमी नवमी व चतुर्दशी तिथियों को निशा काल में किया जाता है ।इसमें देवी के महात्म्य पाठ के साथ पाठ विधि से होम करने का नियम बताया गया है। जो की कुशल आचार्य की देख- रेख में संपादित किया जाना ही श्रेयष्कर व शुभकारी होता है । 🙏
शत्रु नाशिनी बगला पंचबली पूजा:
यह आठवीं महाविद्या है जो की शत्रुओं को नियंत्रित व परास्त करने की क्षमता रखती है। इसीलिए खास तौर पर राजनीति व उससे जुड़े व्यक्तियों को अपने शत्रुओं को परास्त करने हेतु इस महाविद्या का प्रयोग करना स्वभाविक हो जाता है। यही ऐसी विद्या है जिसके प्रयोग से शत्रुओं के समूहों को शीघ्र ही मुंह की खानी पड़ती है।
इस विद्या का प्रयोग परंपरा अनुसार तांत्रिक विधि से ही संभव है,
(वैशाख शुक्ल अष्टमी) दोनों पक्षों की अष्टमी ,नवमी तिथि अमावस्या ,ग्रहण ,व संक्रांति का दिन इस प्रयोग के लिए विशेष शुभ कारक माना गया है।
- बगला के उपासक को पीला वस्त्र धारण करना चाहिए हल्दी की माला व पीले पुष्प से देवी का यंत्र पूजन कर चमेली के तेल से अखंड दीप जलाकर 21 दिनों तक नियम का पालन करते हुए देवी के मंत्र जाप को करने से शीघ्र ही शुभता की प्राप्ति होती है।
- विशेष रूप से यह बगला पंचबली पूजा कामाख्या पीठ के बगला मंदिर के सिद्ध साधकों द्वारा ही कराया जाना शुभ कर वह फलदाई होता है। संस्था आप सभी के लिए इस पंच बली पूजा को अपनी साध्य गुरु परंपरा के साथ कराने को तत्पर है ।
बगला प्रत्यंगिरा कवच पूजा:
शत्रु के द्वारा किए गए समस्त यंत्र, मंत्र तंत्रादि तथा समस्त अभिचार (विद्वेषण , उच्चाटन,आकर्षण, मारण, स्तंभन )आदि क्रियाओं से मनुष्य /जातक को सुरक्षित करने का मात्र एक ही साधन – बगला प्रत्यंगिरा कवच विद्या ही है। यह प्रत्यंगिरा विद्या शत्रु के द्वारा स्थापित समस्त कृत्याओं समूह को शीघ्र ही नष्ट कर तथा भयंकर से भयंकर तांत्रिक प्रयोग का शमन कर अपने साधक के जीवन में सुख शांति और सौभाग्य को प्रदान करती है।
नोट:=यह प्रयोग भी गुरु परंपरा से सिद्ध साधकों द्वारा ही संभव है।
बगला राज्य प्राप्ति पूजा:
राजनेताओं के साथ-साथ राज्य पद व उच्च सरकारी पदों कोशीघ्र ही इस महाविद्या की कृपा से प्राप्त किया जा सकता है। इसमें भगवती बगला के ब्रह्म स्वरूपिणी ,राज राजेश्वरी स्वरूप का यंत्र विधि से पूजन कर मूल मंत्र का 5 लाख जप करने का विधान बताया गया है।
नोट: बगला त्रैलोक्य विजय मन्त्र जप, बगलामाला मन्त्र व तारा कर्पूर स्तोत्र का पाठ ,मन्त्र जप बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है ।
कार्य सिद्धि हेतु
नोट:=व्यापार नौकरी में आने वाले बाधा को दूर करने हेतु 👉
बगला सहस्रनाम स्तोत्र के अष्टोत्तर शत पाठ योग्य आचार्य से कराकर चंपा व जाती पुष्प से अर्चन करने से भगवती शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनुष्य व उसके जीवन में आने वाली बाधाओं को समाप्त कर उसके व्यापार ,करियर व जीवन में शुभता को प्रदान करती है।