दश महाविद्या की प्रमुख शक्तियों में से एक कमला महाविद्या को जाना जाता है । तीनों लोकों को वश में करने के कारण इन्हें त्रैलोक्य माता भी कहा जाता है । यह विद्या सामान्य रूप से धन – धान्य प्रदान करने वाली सौभाग्य को देने वाली या यूं कहें तो समस्त ऐश्वर्य को प्रदान करनेवाली एक मात्र महाविद्या शक्ति है । इसी कारण इसे लक्ष्मी स्वरूपा भी कहा जाता है । इसका आश्रय लेने वाला जीव अपने समस्त पापों से शीघ्र ही निवृत्त हो जाता है । ज्योतिष की दृष्टि से रोहिणी नक्षत्र इसका अधिष्ठान काल माना गया है । इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक आजीवन सुखी व समृद्ध बना रहता है ।यह महाविद्या केवल अर्चना मात्र से ही प्रसन्न हो जाती है । इसे तंत्र शास्त्रों में महारात्रि विद्या के नाम से जाना जाता है । इसके शिव सदाशिव विष्णु है । धूमावती तथा कमला शक्तियों में प्रतिस्पर्धा है । वह ज्येष्ठा है तो यह कमला कनिष्ठा के रूप में अवस्थित है । वे अवरोहिणी थी तो ये स्वयं में रोहिणी है। वे धूमावती आसुरी थी तो ये कमला दिव्या शक्ति के रूप में पूजित हो रही है । वे दरिद्रा थी तो ये कमला लक्ष्मी रूप में व्यवहृत हो संसार को शुभता प्रदान कर रही है ।
अतः देखा जाए तो जीव को इस संसार में भौतिक उन्नति के लिए भगवती कमला महाविद्या की उपासना अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी ।क्योकि भौतिक सम्पन्नता की सूचक कमला विद्या ही है । इसका कारक ग्रह शुक्र है जो स्वयं में भोग व एश्वर्यता का धोतक माना गया है ।इसकी शुभता जन्म कुंडली में सुख ,संसाधन ,उपलब्धि ,पद – प्रतिष्ठा व अनेक भोगों को दर्शाता है ।जीवन में उपलब्धियों का कारक ही शुक्र को माना गया है । अतः शुक्र के पीड़ित होने का अर्थ है भगवती कमला महाविद्या का मेरे स्वयं के जीवन व उपलब्धियों से रूष्ट हो जाना ।